सूरज के उगने की आस
अँधेरे के हज़ार चौराहों से होकर गुज़रते
आख़िर वहीं पहुँचती हूँ जहाँ सूरज के उगने की आस ज़िंदा हैरुके तो यहीं जम जाएँगे....
अँधेरे के हज़ार चौराहों से होकर गुज़रते
आख़िर वहीं पहुँचती हूँ जहाँ सूरज के उगने की आस ज़िंदा हैCopyright © 2019 अलबेली की दुनियाँ . Created by Albeli
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