देहरी पर ...






आँगन बैठ कर गाए जाने वाले गीत,
देहरी पर बैठ कर लिखे जाने वाली कविता से
कितने अलग थे...

(कभी-कभी कलम किसी ख़याल से लिपटकर डूब जाती है)

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